उर उदासी के अम्बुधि में खोया पड़ा
उर के उर में विषण्णता का ताला पड़ा
उर का यौवन था यूं रीता जा रहा
प्रेम का पृष्ठ उड़ता तभी आ पड़ा
प्रेम के पृष्ठ पढ़ उर थिरकने लगा
दृग में ज्योंति सा वो मचलने लगा
प्रेम का हव्य पाकर हुआ धन्य वो
हो अलौकिक जगत में सँवरने लगा
उसको अनुरक्ति का शीर्षक मिल गया
और कथानक कहानी का उर मिल गया
प्रेम के शिल्प ने तब चमत्कृत किया
रति को उद्दातता का गगन मिल गया
पवन तिवारी
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