बहुत सारे शब्दों
में एक शब्द है किरायेदार
क्या कभी आप ने सुना
है किरायेदार के बारे में
हाँ गाँव में कम
मिलते हैं
शहर जाओ थोक में
मिलेंगे
बिन बताये भी कई बार
पहचान जाओगे
वे लुटे हुए लोग
होते हैं,परेशान,हैरान
दूसरों के ख्वाबों,जिम्मेदारियों
और
मजबूरियों का बोझ
उठाये
इस गली,उस गली,इस
नगर,उस शहर
खानाबदोश की तरह
किसी इमारत या मकान
में कुछ दिनों के लिए
नापसंद मेहमान की
तरह
उस पर मजेदार ये कि
उन्हें लूटने के लिए
एक पूरा गिरोह का
बाज़ार
मकान दिलाने वाला
दलाल
किरायेदार बनने से
पहले,बनना होगा
अनिच्छा से दलाल का
शिकार
मकान मालिक लेगा बाद
में किराया
पर किराए का दलाल ले
लेगा किराया
किराए के मकान में
दाखिला लेने से पहले
जैसे नगरवधू से
मुलाक़ात से पहले
मालकिन ले लेती है
पैसे
किरायेदार में सबका
हिस्सा
पर किरायेदार का
हिस्सा किसी में नहीं
उसकी एक-एक खुशी
में,कामयाबी में सबका हिस्सा
उस किराए के मकान के
दरो-दीवार का भी हिस्सा
जब किरायेदार न
चाहकर भी बिछड़ता है मकान से
तो भूल जाता है अपने
कई कीमती सामान और
कई तो वो मकान ही
हड़प लेता है जिनमें उसकी
यादों का सबसे बड़ा
संदूक होता है
इसी बिछुड़े हुए मकान
में,
जिससे अभी-अभी बिछड़ा
है
पहली संतान हुई थी,किरायेदार
बना था पिता
बच्चे की जन्मभूमि,
पहली अच्छी नौकरी की
याद
इसी किराए के कमरे
की दरो-दीवार
से तनकर चिपकी हुई
है
कभी-कभी दो चार साल
तो
कभी – कभी हर साल
पता नया हो जाता है
कई जाने – पहचानें
पाँव
पुराने पते तक जाकर
उदास वापस लौट जाते
हैं
नया पता पूछते हुए
डाकिया भी बुदबुदा
कर
थोड़ी खीझ से लौटता
है कई बार
साथ ही लौट जाती हैं
बद्दुआ देकर चिट्ठियाँ
और भी बहुत से जाने
अनजाने लोग
मैं किरायेदार पता
बता-बता के हो जाता हूँ परेशान
लोग जब मेरा नया पता
जान लेते हैं कि तभी
मैं फिर उससे नये एक
दूसरे
पते पर घसीटकर
पहुंचा दिया जाता हूँ
आप मुझे बंजारा और
मजबूर आवारा भी कह
सकते हैं
इस दौरान कई रिश्ते
जो बनाने पड़ते हैं
जरूरतों के
मकान-दर-मकान बदलते
रहते हैं
वे रिश्ते भी किराये
के मकान की तरह
किराए के होते हैं
फूल वाला,दूध
वाला,किराने वाला, सब
छूट जाते हैं,नये
मकान में आने पर
फिर खोजने पड़ते हैं
जरुरत के नए रिश्ते
फूल वाला,दूध
वाला,किराने वाला,स्त्री वाला
पर ये महीने भर की
उधारी नहीं करते
फिर से बनाने पड़ते
हैं आपसी रिश्ते
उधारी चुकाने के
विश्वास के रिश्ते
जब बन जाते हैं
उधारी चुकाने वाले विश्वास के रिश्ते
तभी फिर अनिच्छा से
बदल देना पड़ता है
किराए का मकान.
फिर नये पते के साथ,
नये-गली मोहल्ले
पड़ोसी,सड़कें और
बाज़ार सब नये
मैं खुद भी उनके लिए
अजनबी
इसी तरह अमूमन
किरायेदार की जिन्दगी में
अन्जान परिवार,अच्छे
बुरे पड़ोसी और
ना जाने कितने
चेहरों वाले लोग
जब तक हम बनते हैं
अच्छे पड़ोसी
कि तभी आ जाता है बिछड़ने
का फरमान
न चाहकर भी नए मकान
नये नगर को अपनाना
पड़ता है
बहुत पीड़ा होती है
जैसे किसी स्त्री को
एक अपरिचित
पुरुष के साथ अपनी
इच्छा के विरुद्ध
गुजारनी पड़े रात.
मैं किराएदार, न जाने
कितनी बार मेरे साथ
होते हैं इस प्रकार
के व्यवहार
काईयें दलालों और मकान मालिकों का इतना शिकार हुआ
हूँ
कि कभी-कभी लगता है
किरायेदार कम
नगरवधू हो गया
हूँ,जाने कितनी बार लुटा हूँ
अपनी इच्छा के
विरुद्ध
समझना है किरायदार की
पीड़ा को
तो गुज़ारिए कुछ दिन
किरायेदार बन
पवन तिवारी
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com
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