यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 6 अगस्त 2017

जेठ की दोपहर में भटक था रहा



जेठ की दोपहर में भटक था रहा
था पसीनें की बूंदों से भीगा ये तन
कि तभी तुम पे मेरी नज़र जा पड़ी
आके यूँ ढक गया,धूप को जैसे घन

मन में हलचल हुई प्रणय सी वेदना
जैसे मिल जाएगा प्रेम का मुझको धन
खो गया भरी दोपहरी ही स्वप्न में
बेख़बर धूप में जल गया मेरा तन

जाने तुम कब गई कि पता ना चला
स्वप्न टूटा तो सर कर रहा टन-टन
तब से हर दोपहर मैं यहीं आता हूँ
तुम बिन लगता नहीं है कहीं मेरा मन

प्रणय एहसास ही तुमसे पहला हुआ
झूमा था मेरा मन,प्रेम की लहर बन
इस ह्रदय को स्पंदित तुम्ही ने किया
तुमको ही है समर्पित ये तन और मन

 अपने भी प्रेम का एक संगम बने
यमुना सा तेरा तन गंगा सा मेरा मन
प्रेम पावन मेरा तू मिले ना मिले
तू सदा खुश रहे इतना चाहे ये मन 
  
पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978/9029296907


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