लिखते
हो छंद कविता या जानते भी हो
मुख ने
तुम्हारा ही जाने क्यों नाम ले लिया
जब झूम
के मौसम प्रिये सावन का आया 
तेरी
सुनहरी यादों से तब काम ले लिया 
पत्नी
ने पूछा तुमने कभी प्रणय था किया 
जिह्वा
ने बेझिझक तेरा ही नाम ले लिया 
मित्र
ने तेरे नाम से इक जाम रख दिया 
पीता
नहीं था फिर भी मगर जाम ले लिया 
कैसे
भलाई का विचार उर में लाऊं मैं
जिसको
बचाया था पुलिस में नाम ले लिया 
चाय की
दुकां है मेरी आइये कभी 
मित्र
था वो चाय का भी दाम ले लिया 
यादों
की दुकां का सुना कि हाट लगा है
जाकर
तुम्हारी यादों की इक शाम ले लिया
ये शाम मनोरम क्या होती है ‘’पवन’’
अधरों
ने तेरी अलकों का ही नाम ले लिया 
पवन
तिवारी
सम्पर्क -  7718080978
poetpawan50@gmail.com
 

 
 
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