जब भी पूछो बनाकर मुँह यूँ ही इन्कार करते हैं
मेरी बीमारी में तो बिन कहे इकरार करते हैं
घर में जब भी झगड़ते हैं,तुम ऐसी हो ,तुम वैसी हो
मगर बाहर जमाने से फकत तारीफ़ करते हैं
मैं कहाँ कम हूँ,जब-तब झिड़कती रहती हूँ उनको
मगर सच ये है उनसे हम भी बहुत प्यार करते हैं
बिछुड़ते हैं कभी जब हम तो ये महसूस होता है
मुहब्बत कितनी है उनसे और कितना याद करते हैं
बिछुडन के बाद की पहली रात में, बस करवटों का साथ होता है
जैसे वर्षों से ये रात ठहरी है पवन और गुजरने का इंतज़ार करते हैं
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