यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 4 मार्च 2017

कांग्रेस खुद को बदले या घुट –घुट कर मरने को तैयार हो जाए


एक जमाने में पूरे देश में कांग्रेस का शासन था.भारत की चारो दिशाओं में कांग्रेस चमक रही थी. उसे लगा कि उसकी चमक कभी कम नहीं होगी.उसका सूरज कभी डूबेगा नहीं. उसके पास गांधी जैसे सूरज और नेहरू जैसे चन्द्रमा हैं. दिन और रात दोनों में उन्ही का राज है. धीरे धीरे 50 भी आकर गुज़र गये.पर कांग्रेस का सिंहासन हिला नहीं.ऐसे में घमंड होना बड़ी बात नहीं.और जब घमंड होता है तो फिर अनीति और अत्याचार बढ़ता है. इसी अनीति और अत्याचार के विरोध में एक स्वर धीरे–धीरे मुखरित हो रहा था. जिसका नाम पहले जनसंघ था और फिर नई तैयारियों , नये रूप में भाजपा बन कर आयी. उसे मौका मिला राम मंदिर निर्माण और बाबरी मस्जिद .... यही से भाजपा ने कांग्रेस को तेजी से निगलना शुरू किया.किन्तु कांग्रेस तो अपने मद में थी उसे लगा ये मेरा क्या बिगाड़ेंगे.... और १९८९ के चुनाव में आडवाणी के नेतृत्व में 86 सीट जीती. उसके बाद हुए चुनाव में 120 सीटें जीत कर आई. इस बीच 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी काण्ड हुआ. उत्तर प्रदेश में मुलायम मुख्यमंत्री थे कारसेवकों पर गोलियां चलवाकर मुस्लिमों के नये पहरुआ बन बैठे. कांग्रेस से मुसलमान छिटककर सपा के पाले में चले गये. कांशीराम का उभार दलित आन्दोलन को लेकर हुआ बामसेफ  और बसपा ने दलितों का मसीहा घोषित किया और दलितों ने मान भी लिया बचे सवर्ण वे कांग्रेस के परम्परागत मतदाता थे. वे आरक्षण और हिन्दू विरोधी कांग्रेस पर लगते आरोपों के कारण किनारा करने लगी. कांग्रेस अल्पसंख्यक राग अलापती रही... जबकि सच यह था कि मुस्लिम दूसरे बहुसंख्यक थे ... अल्पसंख्यक तो इसाई , बौद्ध , सिख,जैनी थे.इन्डोनिशिया के बाद सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में है.

बाबरी कांड भाजपा तेजी से बढ़ रही थी और 1996 में अटल जी के नेतृत्व में सबसे बड़ा दल बनकर उभरी. फिर भी कांग्रेस के कान खड़े नहीं हुए. क्योंकि तब तक गांधी परिवार राजपरिवार के स्वरुप में आ चुका था शेष कांग्रेसी उनके अनुचर.... जब सब अनुचर हैं तो राजा के सामने कडवा सच
 कहने का साहस कौन करे .. किसे अपना सर मुड़ाना है..इसी पर

गोस्वामी जी ने सुन्दरकाण्ड में लिखा है ... सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय

बोलहिं भय आस |राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास || तो फिर
नाश शुरू हुआ... राम मंदिर आन्दोलन में जब हिन्दू भाजपा की तरफ
झुका तो काँग्रेस ने इसका हल निकालने के बजाय मुस्लिमों के जरिये
,धर्मनिरपेक्षता के जरिये सत्ता साधने की कोशिश शुरू की.इस इससे हिन्दू और बिदका और 13 अक्तूबर1999 में अटल जी प्रधान मंत्री बन गये. इस बीच भाजपा कई राज्यों की सत्ता में आ गई.उसने एक नारा दिया ‘’आज पांच प्रदेश कल सारा देश’’ उन दिनों भाजपा की सत्ता 5 राज्यों में थी. तब शायद ही कांग्रेस ने सोंचा हो कि भाजपा का ये नारा सच हो जाएगा और हम पांच प्रदेश में सिमट जायेंगे और भाजपा सारा देश हो जायेगी. इस बीच कांग्रेस  भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी सिद्ध करने पर टूल गई और खुद की गलतियों पर ध्यान देना भूल गयी. इस बीच बीजेपी में दूसरी पीढी के नेता तेज़ी से उभर रहे थे. उन्हें छूट मिल रही थी खुद को आजमाने की. वहीं कांग्रेस में सिर्फ गांधी परिवार की सलामी तक नेता गिरी औधें मुँह पडी थी. समय तेजी से भाग रहा था और इसी बीच 27 फरवरी 2002 को गोधरा काण्ड हुआ. हिन्दू कारसेवकों को ज़िंदा रेल में जला दिया गया. इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रया बेहद ठंडी रही मुस्लिम वोटो के कारण. हिन्दू आक्रोश में था.कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता – धर्मनिरपेक्षता चिल्ला रही थी. कट्टर हिन्दू सोच रहा था कि हमारे देश में हमें सुरक्षित नहीं ... वे पाकिस्तान लेने के बाद भी हमारे सीने पर मूँग दल रहे हैं. परिणाम स्वरूप गुजरात में दंगे भडके..... मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे. कान्ग्रेस ने उन्हें मुसलमानों का हत्यारा कहा. पूरी दुनियाँ में मोदी के खिलाफ लोबिंग की परिणाम स्वरुप मोदी मतलब मुस्लिमों का दुश्मन. अमेरिका ने मोदी का वीजा इसी घटना के कारण अस्वीकार कर दिया. कांग्रेस बेहद खुस थी .ये उसका एक छोटा पक्ष था. 15 करोड़ मुसलमानों की नजर में खलनायक बनाकर बदले में उसने 50 करोड़ हिन्दुओं का नायक भी बना दिया. यही कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल थी. दुर्भाग्य से 2004 में भाजपा हार गयी और कांग्रेस ने इसे गुजरात दंगों का दुष्परिणाम बताया. मोदी तब भी मुख्यमंत्री थे. कांग्रेस ने उन्हें केन्द्रीय एजेंसियों के माध्यम से खूब छकाया. मोदी ने उसका फायदा उठाया मीडिया तक बात पहुंचाई. इस बीच वाजपेयी जी का स्वास्थ्य धोका दे गया. मोदी ने गुजरात विकास का डंका ऐसा बजाया कि पूरा देश उससे प्रभावित दिखा और फिर 2012 में विचार चला कि क्यों न मोदी को 2014 के चुनाओं में प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में  पेश किया जाय . तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद आखिरकार मोदी प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित हुए. उन्हें दोहरा फायदा हुआ ये तो विकास पुरुष की छवि  और दूसरे हिंदूवादी होने का विकास और हिंदूवादी दोनों विचारों का का भरपूर मत मिला और 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत में आये. तब तक कांग्रेस पर हिन्दू विरोधी ठप्पा लग चुका था दबी जुबान में एक बार इस विषय को एके एंटनी ने उठाया भी था पर गांधी परिवार ने उस पर कान नहीं दिया. अनुभवी नेताओं को किनारे कर राहुल गांधी को आगे कर दिया गया . जिसे भारतीय समाज की वास्तविकता की कुछ समझ नहीं. वहीं भाजपा 2015 में दुनिया की सबसे अधिक सदस्यों वाली पार्टी बन गई. मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद उन सभी जगहों पर गये  जहाँ हिन्दुओं के प्रसिद्द धर्म स्थान हैं फिर चाहे नेपाल हो या बंगलादेश. उन्होंने मुस्लिम टोपी धारण करने से इनकार कर दिया.जबकि इससे पहले उलटा होता था.यह सोंचनीय था कि किसी देश में कैसे 80 फीसदी लोगों को उपेक्षित कर 20 प्रतिशत लोगों के इर्द-गिर्द राजनीति चल रही थी. कारण हिन्दू बंटे थे मोदी उन्हें एक हद तक एक जुट करनें में सफल हुए. एंटोनी एक इसाई होकर समझ गये पर सोनिया राहुल को नहीं समझा पाए. इस बीच कई नेताओं ने हवा देखकर भजपा का दामन थाम लिया और सता में हैं फिर ने jnu में वही पुराना राग छेड़ा और इस चक्कर में वह कब राष्ट्रवाद के विरोध में चली गई उसे पता ही नहीं चला. फिर अख़लाक़ और वेमुला पर बीजेपी को इससे फायदा हुआ .हिन्दू युवा वर्ग मोदी की तरफ झुकता गया .परिणाम स्वरूप  हरियाणा,गोवा,छत्तीसगढ़,गुजरात,राजस्थान, महाराष्ट्र,झारखण्ड, अरुणाचल, असम यहाँ तक कि जम्मू कश्मीर में भी भाजपा की सरकार बन गयी. उसके बाद भी राहुल गांधी एंड कम्पनी नहीं समझी सो नगर निकाय के तमाम चुनाओं में भी हारे और यही रवैया रहा तो उत्तर प्रदेश भी हारेंगे और आगे भी ऐसे में कांग्रेस की यदि भारतीय राजनीति में अपना तम्बू मजबूती से गाड़े रखना है तो उसे हिन्दू विरोधी छवि से बाहर निकलना होगा . मुस्लिम तुष्टीकरण का त्याग करना होगा, बहुसंख्यकों को सम्मान देना होगा. हिन्दू संस्कृति को सम्मान देना होगा.राष्ट्रवाद के रास्ते पर लौटना होगा. नये चेहरों युवाओं के हाथ में कांग्रेस की बागडोर सौपनी होगी. सोनिया जी को पुत्र मोंह त्यागना होगा. राहुल को किनारे होना होगा. बूढ़े चमचों को घर बिठाना होगा. ज्योतिरादित्य जैसे अनेक युवाओं को बागडोर सौपनी होगी . तब जाकर कांग्रेस का अभ्युदय होगा अन्यथा कांग्रेसियों को और कांग्रेस को यूँ ही धृतराष्ट्र की तरह हार देखना होगा और तिल-तिल कर घुट-घुट कर मरना होगा.अस्तु 


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