जब से तुम हो गयी जिन्दगी सो गई
जिनकी चाहत थी वो मंजिलें खो गई
रात कमरे में आया तो देखा ये मैं
बिन तुम्हारे ये दीवारें सोई नहीं
छूकर देखा तो इनमें नमीं सी थी
तुम गई तो बहुत खूब रोई थीं ये
बिस्तरे ने भी करवट नहीं बदली थी
सिलवटें उनमें वैसी की वैसी ही थीं
जैसी हालत में तुम छोडकर गयी थी
देखा दीपक में तो तेल था,पर बुझा
तुम गई तो उसकी भी रोशनी खो गई
जंगले पर अब कबूतर भी आते नहीं
उनको भी लग गया था अब तुम रहती नहीं
मकड़ियाँ भी अब जाले नहीं बुन रही
उनकी भी ख्वाहिशें बस धरी रह गयी
अब वो किसको फंसायेंगी और क्यों बुनें
जिसकी चाहत थी वो तो चली ही गई
ये जो कमरा कभी रूप का महल था
तुम गई वीरानी सी छा गई
अब तो दरवाजा भी शायद रोता है
कराहने की आवाज़ आयी खोला धीरे से जो
कमरे से निकला मैं हैरान परेशान
एक कमरे में रहते हैं इतने लोग
करते हैं सबके-सब इन्तहां तुमसे प्यार
दरो-दीवार सब तुम पे मरते हैं और
मैं बस यही सोंचता रहा कि
हम ही तुमसे प्यार करते हैं
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
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