यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

जिन्दगी को जीना

जब कोई गरीबी को जीता है

 तो वह जिंदगी को

 सही मायनों में जीना सीखता है

 गरीबी में जीना अर्थात

 पिंजरे में जीने की कला

 ठोकर खाकर भी

 आगे बढ़ने की कला

 भूखे रहकर भी मुस्कुराने की कला

 न चाहते हुए भी

 दुश्मन से हाथ मिलाने की कला

 गरीबी में जीना मतलब

 परिचितों और दोस्तों में फर्क जाने का मौसम

 गरीबी में जीना मतलब

कमजोर दोस्तों के पहचान का मौसम

अपनों और कथित अपनों के

बीच की रेखा को देख पाने का दिन

 पत्नी, भाई,बहन,सगे-संबंधों के

जानने का पर्व

गरीबी,अपमान में खीझ और कम में    

  जीने का हुनर सिखाती है

 गरीबी हमें जिन्दगी जीने की पेशेवरकला सिखाती है

गरीबी हमें धोखे खाने और असफलता से बचने के
अनेक-अनेक हुनर सिखाती है 
गरीबी धैर्य मापने का सर्वोत्तम बटखरा है
गरीबी प्रताड़ना मापने का सही यंत्र है
वास्तव में गरीबी हमें सच्चे मायनों में
 जीने की कला सिखाती है 
जो हमें अच्छे दिन सिखाने की कूवत नहीं रखते 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें