काफी दिनों से हाथ
खाली है
पर हृदय तो भरा हुआ है
पर हृदय को देख सकें ऐसी दृष्टि कहां
सबको मेरे खाली हाथ दिखते हैं
कुछ चालाक परिचितों ने
बातों-बातों में
मेरी जेब का भी पता लगा लिया
उन्हें जेब भी खाली मिली
कुछ आगे बढ़कर
उन्होंने
मेरे खातों की भी हकीकत जान ली
सब-खाली ,सब-खाली बस उस दिन से
वे कभी नहीं दिखे
कई बार खोजा पर कभी नहीं दिखे
एक बार बाज़ार में दिखे भीपर
जरूरी काम बोल
कर निकल गए
मेरे खाली हाथ की चर्चा मेरे घर से लेकर
मोहल्ले और पूरे शहर में हो
रही है
दोस्त अब सिर्फ परिचित बताते हैं
और परिचित तो पल्ला ही झाड़ लेते हैं
कौन पवन
तिवारी ?
जो अक्सर चर्चा करते थे मेरी चर्चा,मेरी तारीफ
अब वह सिर्फ मेरे खाली हाथ
की चर्चा करते हैं
मेरे बारे में कभी न बात होती है न विचार होता है
मेरे नाम पर होती है तो बस मेरे खाली हाथ की चर्चा
और फिर उनके लिए जिम्मेदार मेरी तमाम
कमियाँ,बुराइयां गिनाई जाती हैं सिलसिलेवार
मेरी जेब खाली होने की खबर उड़ने से पहले
कभी-कभी ख्वाहिश होती थी अकेला एकांत मिले
अक्सर
कोई न कोई मिल ही जाता था
जब से मेरे हाथ खाली होने की खबर फैली है
अकेलापन कुछ इस
तरह सिर पर सवार हुआ है
कि लोग फोन पर भी बात करना पसंद नहीं करते
हजारों-हजार परिचितों, सैकड़ों दोस्तों में अब
मुश्किल से दस-पन्द्रह परिचित और चार-पांच दोस्त बचे हैं
कुल मिलाकर अब मेरी दुनिया सत्रह-अठारह लोगों तक है
जब तक हाथ भरे और जेबें भारी थी मुझे गुमान था
अपनी सामाजिकता पर, दोस्तों पर मैं
कभी-कभी बड़े गर्व से कहता
हजारों-हजारों लोग जानते हैं मुझे
पर आज कहने में तो आवाज़ लड़खड़ा
जाएगी
आज सच जानकर शर्मिंदा हूं
मुझे तो मुट्ठी भर लोग भी नहीं जानते
हाँ पर हम इस बात
की भी खुशी है कि
सत्तरह-अठारह लोग तो पहचानते हैं
अभी भी यह कह सकता हूं
इस शहर में कुछ लोग मुझे भी जानते हैं
कुछ दोस्त मेरे भी है
खाली हाथ ने मुझे
अपने आप से
साक्षात्कार कराया है
मुझे सच का दर्पण दिखाया है
मुझे अपनों से अब
जाकर मिलाया है
आभार है मेरे खाली हाथ
तूने माया की इस नगरी में
सच से मिलवाया है
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