यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

बहादुरी व अन्य लघुकथाएं


रहम


एक गरीब आदमी को अनाज चोरी के आरोप में एक सेठ ने गिरफ्तार करवा दिया. गरीब को अदालत में पेश किया गया. जिरह के बाद जज ने दस हजार का जुर्माना और छह माह की सजा सुनाई. गरीब

आदमी ने गिड़गिड़ाते हुए हाथ जोड़कर विनती की.जज साहब गरीब आदमी हूं.10 हजार कहां से

लाऊंगा.कुछ रहम कीजिए.जज ने मेज पर रखा चश्मा उठाकर नाक पर टिकाते हुए सहमति में सिर

हिलाया.गरीब आदमी ने हाथ जोड़कर सिर झुकाया,कृतज्ञता जताई. जज ने फैसला बदलते हुए कहा-

मुजरिम की माली हालत को देखते हुए जुर्माने की रकम 10000 से घटाकर 5000 की जाती है. इतना

सुनते ही गरीब आदमी के चेहरे पर एक राहत की रंगत दौड़ी ही थी कि जज ने आगे कहा- और 6 माह

की सजा 1 वर्ष में तब्दील की जाती है. इतना सुनते ही गरीब आदमी गश खाकर कटघरे में ही गिर 

गया.
इज्जत


एक बार एक सेठ के घर में खिड़की के रास्ते कुछ चोर घुस आए.तिजोरी की चाबी पाने के लिए इधर-

उधर खोजने लगे.इस कोशिश में घर का ढेर सारा सामान तितर-बितर हो गया.इस बीच सेठ की नींद टूट

गयी,पर वह डर के मारे चुप रहा.तभी चोर सेठ की बेटी के कमरे की तरफ बढ़े.चोरों को बेटी के कमरे

की तरफ बढ़ते देख,सेठ अचानक उठकर बैठ गया और चीखते हुए बोला- मेरी बेटियों को हाथ मत 

लगाना.चाहे तो मेरी इज्जत ले लो.



आंखों वाला अंधा


 एक बार बाजार में दंगा हुआ.एक व्यापारी के दुकान में कुछ दंगाई

घुसे और गल्ले पर बैठे उसके बेटे

को पीटने लगे.व्यापारी चिल्लाया- अरे यह क्या कर रहे हो? यह क्या कर रहे हो? एक दंगाई बोला दिखता नहीं,आंखें होकर भी सूरदास बन रहा है. तभी दूसरा दंगाई गल्ला खोलकर सारे रुपए लेने लगा.व्यापारी फिर चिल्लाया- अरे क्या कर रहे हो- दंगाई बोला- तेरा गल्ला लूट रहा हूं. आंखों वाले अंधे सेठ.

मुझे मालूम है...


अलगू के पड़ोसी का लड़का साइकिल चलाते हुए गिर पड़ा. उसके घुटने में गहरी चोट लग गई । लड़के के

घर कई लोग देखने पहुंचे. पहुंचते ही अलगू ने कहा- ‘मुझे मालूम था यह गिरेगा’ चोट तो लगनी ही थी.

यह चला ही ऐसे रहा था. घरवालों को बुरा लगा, पर किसी ने कुछ कहा नहीं. कुछ दिनों बाद एक दूसरे 

पड़ोसी का बेटा परीक्षा में फेल हो गया. वहां भी अलगू पहुंचे और पहुंचते ही  कहा- मुझे मालूम था यह 

फेल होगा. कभी किताब खोल कर एक घंटा भी तो नहीं पढ़ता. बच्चे के मां बाप को बुरा लगा, पर वह

चुप रहे.पर इस बार अलगू को पड़ोसियों ने सबक सिखाने की सोंची. वह मौके की तलाश में थे ही कि,

कुछ ही दिनों बाद मौका मिल गया. गांव के ही एक आदमी की गाय चोरी हो गई.लोग संवेदना जताने

गए.अलगू भी गये. आदत के अनुसार अलगू से रहा नहीं गया. पहुंचते ही बोले- मुझे मालूम था, इतना

कहना था कि लोगों ने एक साथ पुलिस की ओर देखते हुए कहा- गाय की चोरी की मालूमात इन्हें ही

थी. उन्होंने खुद ही कहा है. इन्हें गिरफ्तार कर लीजिए. पुलिस ने तुरंत अलगू के हाथ में हथकड़ियां

डाल दी. इससे पहले अलगू कुछ समझ पाते पुलिस ने उठाकर उन्हें जीप में डाल दिया. अलगू ने सफाई

 देनी चाही पर पुलिस ने डांटा. जो भी मालूम है थाने में चल कर बताना. अलगू की बोलती बंद.

बहादुरी

एक पुराने जमीदार थे शिव प्रताप सिंह. एक लम्बे अर्से बाद उनके बेटे को पुत्र हुआ था. अपने नाती के साथ वे बेहद खुस थे.वे ज्यादातर समय उसके साथ बिताया करते. वे उसे अक्सर अपने बीते दिनों के रुतबे की कहानियाँ सुनाया करते थे.जमीदारी तो रही नहीं,पर वे अब भी खुद को जमींदार ही समझते थे. अपने नाती को अक्सर अपनी बहादुरी की कहानियाँ सुनाया करते. शिकार की बातें करते और जर्मनी की बनी हुई अपनी प्रिय पिस्तौल, जो हमेशा अपने पास रखते थे. अक्सर अपने नाती को दिखाते हुए गर्व से कहते- भारत में बहुत कम लोगों के पास ये पिस्तौल होगी.सबसे पहले जर्मनी से मैंने ही मंगाया था. अक्सर उसकी खूबियाँ बताते, ट्रिगर पर हाथ रखकर बताते कि इसे दबाने पर गोली चलती है,पर चलाते कभी नहीं. नाती चलाकर दिखाने की जिद करता, पर हर बार दादा जी किसी न किसी बहाने टाल देते.एक दिन दादा जी पिस्तौल तख्ते पर रख, पास बनी चौकी पर नहाने चले गये. उसी समय नाती घर से बाहर आया और तख्ते पर रखी पिस्तौल देख बेहद खुस हुआ. उसने पिस्तौल झट से उठा ली और चौकी पर नहा रहे दादा जी पर तानते हुए बोला- दादा जी. नाती के हाथ में अपनी ओर तनी पिस्तौल देखकर दादा जी के होश उड़ गये.नाती बोला दादा जी गोली चलाऊं- दादा जी ने हाथ हिला कर मना किया.बोलने की हिम्मत जवाब दे गयी थी. इतने में ट्रिगर टिक की आवाज के साथ दबा और दादा जी धड़ाम से गिरे. आवाज सुनकर नौकर दौडकर बाहर आया.दादा जी को चौकी पर बिठाते हुए पूछा - क्या हुआ मालिक ? दादा जी हडबडाते हुए बोले- नाती ने मुझे गोली मार दी. नौकर ने हँसते हुए कहा- उसमें कभी गोली रहती भी है. फिर दादा जी को याद आया कि पिस्तौल में तो गोली ही नहीं है.



          सम्पर्क - 7718080978

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