यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 20 जुलाई 2024

भारत - भारत की ध्वनि है तो




भारत - भारत  की ध्वनि है तो

निकट से देखो अरुण ही होगा

नाग   कालिया  भय  खाता हो

फिर समझो वह गरुण ही होगा

 

धरने   वाला   गरल   कंठ  में

जग जाने   केवल  शिव होगा

असम्भव को संभव कर दिया

उसके   अंतर   में   इव  होगा

 

मैं  अगस्त्य   का   शेष  वंश हूँ

पर्वत को भी को झुकना होगा

जो   संकेत    समझ     पाए

वो   कहते   हैं   रुकना   होगा

 

बिन जननी के जनक हुआ हूँ

आदि  शक्ति को आना होगा

मुझसे   बैर   जगत   के   बैरी

को  इस  जग   से जाना होगा

 

पवन तिवारी

२०/०७/२०२४


नोट : रात में पौने एक बजे सोते समय यह कविता अवतरित हुई. उठकर बत्ती जलाया और लिखा. तब जाकर सो सका.   

 

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