ज़िन्दगी का ठिकाना
नहीं
कोई अपना बे-गाना नहीं
कर्म किस्मत का सब खेल है
रोज़ का आना -
जाना नहीं
जन्म इक मृत्यु इक छोर है
बीच में ज़िन्दगी मोर है
साध पाया है जो इसको खुश
वरना ये ज़िन्दगी
शोर है
शोर से ऊब जाते
हैं जो
मृत्यु के छोर जाते हैं
वो
आत्महत्या कहे उसको जग
जग नियम तोड़ जाते हैं जो
ज़िन्दगी खेल है माँ लो
खेल की भावना जान लो
और इस भाव से खेले जो
मुक्त हो जाओगे मान लो
पवन तिवारी
३१/०५/२०२४
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