इस तरह जो
रहोगे कदाचार में
तो कहानी बनोगे समाचार
में
प्रेम
से भी बहुत ज़िन्दगी में मिले
लिप्त
फिर हो रहे क्यों अनाचार में
तुम
हो नाहक पड़े जीत में
हार में
ज़िंदगी-ज़िन्दगी
सहज व्यवहार में
मृत्यु
से है बड़ी ज़िंदगी की ध्वजा
कलुष
पीड़ा सतत मिलता संहार में
ज़िंदगी
है
नहीं ऊँची दीवार में
ज़िंदगी
बसती है आपसी प्यार में
प्यार
से बात
करके बने बात जो
फिर
उलझते हो क्यों झूठी तकरार में
आओ
घर को चलें क्यों हो बाज़ार में
जो
भी कहना कहो अपने परिवार में
ऐसा
कुछ भी न अनुचित प्रदर्शित करो
घर
की बातें छपें कल के अखबार
में
सारा
सुख सारा दुःख इस ही संसार में
कर्म अच्छा
करो जाओ मत रार
में
ज़िंदगी फिर
बढ़ेगी संवरते हुए
खुशियाँ
ही खुशियाँ परिवार में यार में
पवन
तिवारी
१७/०१/२०२२
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