यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 16 जुलाई 2022

इस तरह जो रहोगे कदाचार में

इस  तरह   जो  रहोगे  कदाचार  में

तो   कहानी   बनोगे    समाचार  में

प्रेम से भी  बहुत  ज़िन्दगी  में  मिले

लिप्त फिर हो  रहे  क्यों अनाचार में

 

तुम हो नाहक  पड़े  जीत  में हार में

ज़िंदगी-ज़िन्दगी  सहज  व्यवहार में

मृत्यु से  है  बड़ी  ज़िंदगी की ध्वजा

कलुष पीड़ा सतत मिलता संहार में

 

ज़िंदगी  है  नहीं   ऊँची   दीवार में

ज़िंदगी  बसती  है आपसी प्यार में

प्यार  से  बात  करके बने बात जो

फिर उलझते हो क्यों झूठी तकरार में

 

आओ घर को चलें  क्यों  हो बाज़ार में

जो भी कहना कहो  अपने  परिवार में

ऐसा कुछ भी न अनुचित प्रदर्शित करो

घर की बातें  छपें  कल के  अखबार में

 

सारा सुख सारा दुःख इस ही संसार में

कर्म  अच्छा  करो  जाओ  मत  रार में

ज़िंदगी   फिर    बढ़ेगी   संवरते   हुए

खुशियाँ ही खुशियाँ परिवार में यार में

 

पवन तिवारी

१७/०१/२०२२     

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