मेरे
इतिवृत्त में, रूचि इतनी कहाँ से आयी
मेरा
उर टूटा है, धोखे से तुम
ख़ुशी पायी
डाह
से कैसे कोई,
हर्षित हो अंतरतम
इतनी
अधम विद्या कहो कैसे हो तुम लायी
एक
हिय फटा तो, दूजा विहँस रहा कैसे
हाय
मनुज होकर भी तुमने
सहा
कैसे
पीड़ा को देख कोई,
कैसे हो उल्लसित
ऐसे
मन को धिकधिक कुछ नहीं कहा कैसे
प्रेम
के अभिरूप में ये, धब्बा रख देते हैं
प्रेमी
से नाहक,
प्रतिशोध कैसे लेते हैं
प्रेम
ने किसी का, बिगाड़ा भी कुछ नहीं
दुश्मनी
के अंडे सा फिर क्यों कुछ सेते हैं
प्रेम
कर रहे हो तो, लड़ना भी
सीखो
प्रेम
के लिए दृढ़ हो, अड़ना भी सीखो
प्रेम
का उत्सर्ग ऐसा, रचता
इतिहास
मारना
भी सीखो और मरना भी सीखो
पवन
तिवारी
१९/०४/२०२२
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