प्रेम
की अभिलाषा में एक जवानी बीती
अपने
से छल
मिले अन्य से आस नहीं
अभी
अंधेड़ हुए हैं अभी ही बना महल
अभी
जरूरत है लेकिन वो प्यास नहीं है
मैं
उनको, उनको इनको भी
जानूँ हूँ
पर
इनमें से कोई मेरा
ख़ास नहीं है
सारे निकट
दिखाई देते वर्षों
से
पर
हिय जाने सच में कोई पास नहीं है
अब
जो मिला है भरपाई से निश्चित कम है
फिर
भी मन से कहता हूँ कोई काश नहीं है
एक जवानी
थी ओ भी तड़पाकर ली है
उस पर
पूछ रहे हो
कोई त्रास नहीं है
समय
तुम्हारा ही सब
गोरख धंधा है
और
पूछते हो क्यों सर पे घास नहीं है
तुमने
मेरे सूरज पर
परदा डाला
और
कह रहे आँगन मेरा उजास नहीं है
जीवन
के इस उत्तरार्ध में मान
मिला है
अच्छा
है अब तो दुःख का सहवास नहीं है
अब
से पहले कितना त्रास सहा तन मन ने
द्वारे खड़ी प्रतिष्ठा पर
आभास नहीं है
पवन
तिवारी
२३/०४/
२०२२
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