समय
हर चाल है चल रहा
उसका
हर दाव है खल रहा
फिर
भी प्रतिरोध ऐसा गज़ब
समय
का हौंसला ढल
रहा
मरते
- मरते भी मन जी रहा
सुख
की आशा से दुःख पी रहा
फटता
जीवन सतत जा रहा
जिद्दी
उर सिलता ही जा रहा
आदमी
की यही खूबी है
गिर
के फिर से उठा जा रहा
काल
प्रतिकूल है आ रहा
आदमी
फिर भी है
छा रहा
दौर
ही कुछ दुखों
का रहा
फिर
भी हिय काफ़िला सा रहा
हम भी हैं ऐसे ही आदमी
साथ
में सो जहाँ आ रहा
साथ
में पहले कुछ ना रहा
औ थपेड़े सतत खा
रहा
किन्तु
मन से था हारा नहीं
इसलिए
हमको जग गा रहा
पवन
तिवारी
१८/०५/२०२२
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