मैं
तुम्हें रोज ही दुलारुंगा
मैं तुम्हें
रोज और चाहूँगा
रोज
ये प्यार बढ़ता जाता है
रोज
दर पर तुम्हारे
आऊँगा
मैं
कहीं अब नहीं
समाऊँगा
तुम्हरे
दिल में ही घर बसाऊँगा
तुमने
रस्ता नहीं दिया दिल को
नया
राही हूँ भटक
जाऊँगा
सारे
प्रश्नों के लगती हल तुम हो
कई
जन्मों की पुण्य फल तुम हो
तरुंगा
तुमसे ही लगता
ऐसा
मेरे
जीवन की गंगा जल तुम हो
देखो
मुझको उबार देना
तुम
साथ
देना सम्भाल देना
तुम
प्यार
पहला है आख़िरी भी हो
ज़िंदगी
को सँवार देना तुम
पवन
तिवारी
१७/१२/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें