बेवफ़ा
होके हमको प्यारी है
वफ़ा
होती तो चाहता कितना
मेरी
हर बात काट देती
है
मानती
ग़र तो मानता कितना
देव
तब भी समझ नहीं
पाये
एक
नारी को थाहता कितना
प्रेम
उससे ही मात्र उससे था
ऐसे
में ज़िद भी ठानता कितना
कितनी
रातें जगी रही
आँखें
वो न आयी जागता कितना
तसल्ली
झूठी कब तलक देता
सच
आख़िर मैं भागता कितना
दूरियाँ
थी मगर समन्दर सी
ऐसे
में कैसे पाटता कितना
विकल्प
मुझको ढूंढना ही पड़ा
अकेले
सफ़र काटता कितना
पवन
तिवारी
२९/०८/२०२१
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