उन
दिनों जब कहीं कुछ नहीं हो रहा
मन
कहीं जा रहा दिल कहीं खो रहा
करना
चाहूँ भी तो कर हूँ पाता नहीं
ऐसा
लगता था अंदर से कुछ हो रहा
हम
समझदार खुद को समझने लगे
उतना
ही ज़िन्दगी में उलझने लगे
जो
थे बुद्धू यूँ ही बस किये जा रहे
मामले
उनके यूँ ही सुलझने लगे
वे
सरल थे सरल ही किये जा
रहे
जो
भी है उसमें हँसकर जिए जा रहे
एक
हम थे कि कुछ ख़्वाब के वास्ते
कष्ट
पर कष्ट खुद
को दिए जा रहे
इसलिए
जग में ज्यादा
परेशान थे
ज्यादा
संघर्ष के पास सामान थे
ध्येय
जितना बड़ा उतनी बाधाएँ भी
बनता
इतिहास जब पाते सम्मान थे
दिल
को कुछ इस तरह से बताते रहे
मन को तर्कों
से हम समझाते रहे
अब
जो आयी सफलता है समृद्धि लिए
हम सही हिय व मन को जताते रहे
पवन
तिवारी
२४/०८/२०२१
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