यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 20 जून 2022

उन दिनों जब कहीं

उन दिनों जब कहीं कुछ नहीं हो रहा

मन कहीं जा रहा दिल कहीं खो रहा

करना चाहूँ भी तो कर हूँ पाता नहीं

ऐसा लगता था अंदर से कुछ हो रहा

 

हम समझदार  खुद को समझने लगे

उतना ही ज़िन्दगी  में  उलझने लगे

जो थे बुद्धू यूँ  ही बस किये जा रहे

मामले  उनके  यूँ  ही  सुलझने  लगे

 

वे सरल थे सरल  ही  किये  जा  रहे

जो भी है उसमें हँसकर जिए जा रहे

एक हम  थे  कि कुछ ख़्वाब के वास्ते

कष्ट  पर  कष्ट  खुद  को दिए जा रहे

 

इसलिए  जग  में  ज्यादा परेशान थे

ज्यादा  संघर्ष  के   पास  सामान  थे

ध्येय जितना बड़ा उतनी बाधाएँ भी

बनता इतिहास जब पाते सम्मान थे

 

 

दिल को कुछ इस तरह से बताते रहे

मन  को  तर्कों  से  हम समझाते रहे

अब जो आयी सफलता है समृद्धि लिए

हम  सही हिय व मन को जताते रहे

 

पवन तिवारी

२४/०८/२०२१

   

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