यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 16 जून 2022

आँसुओं में समय

आँसुओं  में   समय  सना  सा है

उर कई दिन से  अनमना सा है

कौन अपना  पराया कौन यहाँ

रिश्तों का पर्दा कुछ घना सा है

 

झूठ का  लेप  कुछ  चढ़ा  सा  है

और सच तन के कुछ खड़ा सा है

योग  से  बरखा  झमक के आयी

लेप  उतरा  बुझा   पड़ा  सा  है

 

कौन जग  में  धुला - धुला सा है

किसका चेहरा सदा खिला सा है

धूप औ छाँव जैसे  दुःख - सुख है

कुछ ना कुछ सबको ही गिला सा है

 

वक़्त दुःख से लगे मिला सा है

टूटता  है  नहीं  किला  सा  है

जिद्दी हम भी  हैं आदमी ठहरे

अपनी ठोकर से दुःख हिला सा है

 

पवन तिवारी

२३/०८/२०२१

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