कभी
बनियान अंगोछा ही अपना रूप होत्ता था
कभी
प्यासों का तट कच्चा पुराना कूप होता था
तुम्हारे
नाश्ते में आज इडली
पाश्ता लेकिन
कभी
सुबह का भोजन नमक रोटी तूप होता था
हमारे
गाँव के उर पर खड़ी मंजिल तुम्हारी है
मगर
इस गाँव की ख़ुशबू हमारी थी हमारी है
तुम्हारे
पास पैसा है
तुम्हारे पास पत्थर है
हमारे
पास महुए की व सरसो की खुमारी है
तुम्हारे
पास सुविधाएँ व संसाधन भी सारा है
प्रदूषण
से मगर तुम्हरा शहर तो मारा मारा है
अभावों
में भी हँस करके गुज़र जाते हैं दिन अपने
हवा
का शुद्ध झोंका गाँव में फिर भी हमारा है
बहुत
आसान शहरों में सरे
चालाकियाँ पाना
मगर
मासूमियत चाहिए हमारे गाँव आ जाना
तुम्हारे
शहर में व्यंजन बहुत से मिलते हैं लेकिन
जो
चोखा भात खाना हो हमारे गाँव आ जाना
पवन
तिवारी
२७/०९/२०२१
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