यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 27 जून 2022

कभी बनियान अंगोछा

कभी बनियान अंगोछा ही अपना रूप होत्ता था

कभी प्यासों का तट कच्चा  पुराना कूप होता था

तुम्हारे नाश्ते  में  आज  इडली  पाश्ता  लेकिन

कभी सुबह का भोजन नमक रोटी तूप होता था

 

हमारे गाँव के उर  पर खड़ी मंजिल तुम्हारी है

मगर इस गाँव की ख़ुशबू हमारी थी हमारी है  

तुम्हारे  पास  पैसा  है तुम्हारे  पास  पत्थर है

हमारे पास  महुए की  व सरसो की खुमारी है

 

तुम्हारे पास सुविधाएँ व संसाधन भी सारा है

प्रदूषण से मगर तुम्हरा शहर तो मारा मारा है

अभावों में भी हँस करके गुज़र जाते हैं दिन अपने

हवा का शुद्ध झोंका गाँव में फिर भी हमारा है

 

बहुत आसान  शहरों  में  सरे चालाकियाँ पाना

मगर मासूमियत चाहिए  हमारे गाँव आ जाना

तुम्हारे शहर में व्यंजन बहुत से मिलते हैं लेकिन 

जो चोखा भात खाना हो हमारे गाँव आ जाना

 

पवन तिवारी

२७/०९/२०२१

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