यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 1 जून 2022

गेरुआ पहन आज

गेरुआ पहन आज दमके  हैं बादल

संध्या लगाये है हलका सा काजल

ढलते  हुए  सूर्य  हैं  सौम्य  लगते

सबका है अपना ये नीला सा आँचल

 

रात्रि के बच्चे ठुमकने लगे हैं  

संझा के दीपक भी जलने लगे है

निशा के भी आने की आभा है अप्रतिम

लक्ष्मी के वाहन भी उड़ने लगे हैं

 

प्रह्लाद को इसी प्रहर ने बचाया

नया रूप श्रीहरि का नरसिंह पाया

संध्या निशा की भी महिमा है न्यारी

इनका ही साथ पा के जुगनू है गाया

 

उजाले को नायक  बनाती है रात्रि

हमरी थकन को मिटाती है रात्रि

रात्रि भी देवी हैं सम्मान करना

दीवाली तब तक कि जब तक है रात्रि

 

पवन तिवारी

२१/०७/२०२१

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