गेरुआ
पहन आज दमके हैं बादल
संध्या
लगाये है हलका सा काजल
ढलते हुए
सूर्य हैं सौम्य
लगते
सबका
है अपना ये नीला सा आँचल
रात्रि
के बच्चे ठुमकने लगे हैं
संझा
के दीपक भी जलने लगे है
निशा
के भी आने की आभा है अप्रतिम
लक्ष्मी
के वाहन भी उड़ने लगे हैं
प्रह्लाद
को इसी प्रहर ने बचाया
नया
रूप श्रीहरि का नरसिंह पाया
संध्या
निशा की भी महिमा है न्यारी
इनका
ही साथ पा के जुगनू है गाया
उजाले
को नायक बनाती है रात्रि
हमरी
थकन को मिटाती है रात्रि
रात्रि
भी देवी हैं सम्मान करना
दीवाली
तब तक कि जब तक है रात्रि
पवन
तिवारी
२१/०७/२०२१
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