हरी
हरी काई
पर फिसले हैं पाँव
भीगा
भीगा तन खोजे प्यारी सी ठाँव
नदिया
में नाव और हरे हरे खेत
सबका
है अपना ये नीला सा आँचल
कच्ची
दीवारों पर उग आयी घास
पीपल
को ऐसी जगह
आये रास
घूर पर
कुकुरमुत्ते करते हैं राज
कितने अमोले
जमें आस – पास
द्वा
रे की माटी कटी जा रही
बारिश
के संग बही
जा
रही
केचुओं की हो गयी भरमार
वर्षा
से बछिया डरी जा
रही
बारिश
में बच्चे हैं करते
छपाक
सर्दी
जुकाम को रख देते ताक
वृष्टि
की महिमा बखान करें कितना
क्रोध
में जो आये तो करती भी ख़ाक
पवन
तिवारी
२२/०७/२०२१
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