तुम्हें
प्रेम का दंड बस पा रहे हैं
जाना
कहाँ था कहाँ जा रहे हैं
जीवन
का अब हाल इससे समझ लो
सपन
भी मेरे रोये जा रहे हैं
कैसे
थे कैसे समय आ रहे हैं
गाना
था क्या और क्या गा रहे हैं
कभी
थे हमारे मेरे रह गये हैं
ये
स्वप्न भी गाये जा रहे हैं
प्रेम
वाले भी अब क़हर ढा रहे हैं
पीड़ा
के काले काले घन छा रहे हैं
वीरान
इस प्रेम ने कर दिया है
हालात
ऐसे भी दिन ला रहे हैं
मेरी
ज़िन्दगी में रस ना रहे हैं
मगर
गीत मेरे बहुत भा रहे हैं
ये
गीत आहों के स्वर पे सजे हैं
लोग
हैं कि हँस हँस कर गा रहे हैं
पवन
तिवारी
२०/०७/२०२१
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