यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 13 मई 2022

कभी रिमझिम कभी टिपटिप

कभी रिमझिम कभी टिपटिप

कभी गाये झमाझम है

अजब दीवानी  है ये भी

न देखे दिन है कि तम है

 

कभी दौड़े कभी थम जाय

कभी झूम के आये

अगर मिल जाय पवन तो

कभी गंगा कभी की तरह धार बहाये

कभी देखूँ जो रूप लागे संसार का दम है

 

धरा मग्न होती

अधर देख के हरषे

कुछ हैं देख डरे डरे

नैन हैं बरसे

चलते कदम उसके कोई उजड़े या बसे

बरखा तो रानी है उसे नहीं गम

 

पवन तिवारी

१९/०५/२०२१

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें