एक
व्यक्ति के ही जीवन
में
कितना
कुछ उगता गलता है
एक व्यक्ति के अंदर में
पीड़ा
और हर्ष पलता है
जीवन
चमत्कार से कम ना
देखें
तो यह यह जादूगर है
दुर्जन
सज्जन ढोंगी छलिये
ये
हैं संग संग प्रेम नगर है
ये
क्या कोई अचरज कम है
काँटों
वाला फूल है
राजा
उपवन
में तो पुष्प बहुत हैं
पर
गुलाब का रूतबा ज्यादा
सब ज्यादा है
इसके हिस्से
फिर
भी जीवन करे शिकायत
प्रकृति
नेह सर्वाधिक देती
फिर
भी अपनी करे हिमायत
अभिलाषाओं
के चक्कर में
कैसे
– कैसे दुःख लेता है
अपने
तुच्छ हितों के ख़ातिर
त्रास
ये बहुतों को देता है
सब
जाने हैं फिर भी करते
जीवन
कितना मायावी है
मृत्यु
सत्य है फिर भी जीना
भाव
यही सब पर हावी है
कितने
झंझावात हैं फिर भी
जीवन
लिए फिरे है आशा
कितनी
बार मृत्यु है आती
देता
रहता उसको झाँसा
पवन
तिवारी
२१/०५/२०२१
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