दुःख
के कितने चरण
आते
सुख
का इक पग भी ना आता
हर्ष
क्षण भर को जो आये
मन ये फूले
ना
समाता
सुख अकालों में है शामिल
दुःख तो मिट्टी खोद आता
सुख तो सकुचाये पड़ा है
दुःख
हैं ऊँचे स्वर में गाता
हर तरफ संदिग्धता
है
कौन
किसका साथ पाता
स्वार्थ
से सब ही बँधे हैं
हाथ
पकड़े जो न भाता
जहर
ही पसरा हुआ है
सुधा
को घर कौन लाता
देखते
सब
अप्सरायें
किसी
को ना दिखती माता
मानवीपन मर
रहा है
कोई
अब इस पथ न जाता
किन्तु आशा ही है जीवन
छोड़ो चिंता
कौन छाता
पवन
तिवारी
१८/०५/२०२१
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