यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 12 मई 2022

बरखा जब क्रीड़ा को आयी

बरखा जब क्रीड़ा को आयी

धरती  सोंधे स्वर में गायी

नवल हुए ज्यों तरु धुल धुल के

पोखर  हँस के ले  अंगड़ाई

 

दामिनि बरखा को प्रेम करे

नाचे    तेजोमय   रूप  धरे

कुछ हिय काँपे कुछ हुलसित हो

कुछ नये दृश्य हों हरित हरे

 

बरखा  का  प्रेमी   एक  और

उसका  भी ना कोई एक ठौर

बरखा  के संग  संग नृत्य करे

हर  दौर में  उसका  रहे दौर

 

वह  मेघों  के  भी  संग खेले

वह  जल की लहरों को ठेले

वह  जीवनदायी  वायु सखे

वह जग भर को प्रतिक्षण झेले

 

बरखा तुम जब भी आती हो

शीतल सुखमय कर जाती हो

जीवनदायी  हो  तु म भी तो

जीवन  देकर  सुख  पाती हो

 

पवन तिवारी

२०/०५/२०२१  

 

 

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