शीत वर्षा
या हो गर्मी
नित्य
ही रवि उदित होता
अग्नि का
है कार्य
जलना
कब
किसी पर द्रवित होता
कैसा
भी हो जग में संकट
पुष्प
खिल के मुदित होता
प्रकृति
अपना काम करती
हमको
भी करना पड़ेगा
हो
परिस्थिति विकट कैसी
सतत ही बढ़ना पड़ेगा
झरने
का
है काम झरना
वह कहाँ है
कब
ठहरता
चंद्रमा की धवलता से
कब कहाँ तारा है
डरता
मेघ
संग जल की भी गरिमा
मेघ
बिन पर जल न मरता
साथ
में भी, साथ
के बिन
सबका
है अस्तित्त्व अपना
अपनी
आँखों
से ही
देखो
जो
तुम्हारा अपना सपना
उससे
कुछ कम ना चलेगा
सतत ही बढ़ना
पड़ेगा
यह
समय चलने का केवल
और
बस चलते ही रहना
लक्ष्य
पर जब पहुँच जाना
तब
ह्रदय की बात कहना
धरा
से नभ तक गुनेंगे
ध्यान
से तुम्हें सब सुनेंगे
धैर्य
को तब भी ना खोना
श्रेष्ठ
ये गहना बनेगा
सतत
ही बढ़ना पड़ेगा
तिमिर
से जुगनू न डरते
थोड़ी
ही रोशनी भरते
रात्रि
के मस्तक पे हँस के
अपना
भी सामर्थ्य धरते
रात्रि
के साम्राज्य में ही
रात्रि
से संघर्ष करते
वीरता
का भाव भरते
इस
तरह बनना पड़ेगा
सतत
ही बढ़ना पड़ेगा
पवन
तिवारी
०९/०५/२०२१
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