यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 11 मई 2022

आत्ममुग्धता का है दौर चल रहा

आत्ममुग्धता  का  है  दौर  चल  रहा

नैतिकता का भी आँचल है  ढल  रहा

क्षरित हो रहा है  समय  है  उसी का

आदमी  के  अंदर कोई और पल रहा

 

स्मृतियों  में  बस  सुखद है कल रहा

वर्तमान अपना  जगत  को खल रहा

स्वास्थ्य स्वास्थ्य कहकर बाज़ार इक बना

उसके उपचार  से बदन है  गल रहा

 

रिश्तों को  अपने  ही हाथ  मल रहा

अपनों को देख के अंदर ही जल रहा

ऐसे  में   दुःख  करीब  और  आ रहा

ऐसे में सुख  का  भाव रोज टल रहा

 

दूसरों के फेरे  में  निज  को  छल रहा

बुरा करके सोचता  बुरा ही फल रहा

दुराचरण ने सदाचरण को यूँ निगला

मनुजता का आज भी अधर में हल रहा

 

 

पवन तिवारी

११/०५/२०२१

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