यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 11 मई 2022

उदास सुबह है

उदास सुबह है निराश दोपहर है

जरा जरा घाम है,डरी सी शाम है,

ऐसी ज़िन्दगी का क्या काम है ?

 

रात सोने के लिए और सब जाग रहे

आँखों में लाली है बहुत से हैं भाग रहे

फिर रात इसका किसलिए नाम है ?

 

सूरज ही सुबह करता वही करता शाम है

तारों को रात भर केवल आराम है

फिर भी हर दोपहर को सूरज बदनाम है !

 

खेती में लोहे के कितने सामान हैं ?

हथियार बनते हैं कितने फरमान हैं

मोटर से ले करके बनते विमान हैं

ऐसे में सोने को क्यों बड़ा गुमान है?

 

लोहे से ज्यादा क्यों सोने का दाम है

जीवन में लोहे का सर्वाधिक काम है

किन्तु देह पर पसरे सोने का दाम है

सौन्दर्य  मेहनत  पर  भारी  पड़ा है

हर युग में यही पाप सबसे महान है

इस पर भी बोले कुछ कहाँ पड़ा ज्ञान है

 

 

पवन तिवारी

०७/०५/२०२१

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