उदास
उजड़ा ग्राम आ
गया
स्वर
में त्राहिमाम आ गया
काम
है रोता शहरों
में भी
बदनामों
नाम आ गया
समय
बड़ा विकराल आ गया
झुका
हुआ सा भाल आ गया
हँसते चेहरे
रोने से हैं
धनिकों
का भी काल आ गया
सम्बंधों
में
जाल आ गया
जैसे
पिचका
गाल आ गया
खुशियों
पर ही ग्रहण लगा है
सामने
खाली थाल आ गया
आखों
में ज्यों बाल आ गया
संकट
नहीं बवाल आ गया
जितने
भी कमाल वाले थे
सब
पर ही जवाल आ गया
प्रकृति
का साथी काल आ गया
खींचने
सबकी खाल
आ गया
प्रकृति
से क्षमा माँग लो कहता
हुए ठोंकते
ताल आ गया
जग भर में
भूचाल आ गया
कुछ
समझे थे काल आ गया
सुधर
गये तो बच सकते हो
काल
का वरना लाल आ गया
पवन
तिवारी
०६/०५/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें