कुछ
तो भीगा भीगा सा है
और बहुत
कुछ भीगा है
अंदर धधक
अनेकों के हैं
पर बाहर
से भीगा है
कितने अंदर
बाहर सूखे
पर तन
पूरा भीगा है
बारिश भिगो
रही है तन को
रोम रोम
तक भीगा है
पलकों
का उपवन भीगा है
और ये
जीवन सूखा है
रिमझिम
रिमझिम हो रही बारिश
दादुर पूरा
भीगा है
वो
भी सूखा
सूखा सा है
जो वर्षों
तक भीगा है
यही
भाव दुःख देता रहता
जो इनके
संग भीगा है
पवन
तिवारी
२९/०५/२०२१
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