यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 17 मई 2022

कुछ तो भीगा भीगा सा है

कुछ तो भीगा भीगा सा है

और  बहुत  कुछ  भीगा है

अंदर  धधक  अनेकों  के हैं

पर   बाहर   से  भीगा  है

 

कितने  अंदर  बाहर  सूखे

पर  तन  पूरा   भीगा   है

बारिश  भिगो  रही है तन को 

रोम  रोम  तक  भीगा  है

 

पलकों का उपवन भीगा है

और   ये  जीवन  सूखा  है

रिमझिम रिमझिम हो रही बारिश

दादुर   पूरा     भीगा   है    

 

वो भी  सूखा   सूखा  सा है

जो   वर्षों   तक   भीगा  है

यही भाव दुःख देता रहता

जो  इनके   संग   भीगा  है

 

पवन तिवारी

२९/०५/२०२१  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें