कितने
रिश्तों को इस अर्थ ने खाया है
राग
मैं मैं का इसने बहुत
गाया है
अर्थ
का मद लिए घूमता रहता है
किन्तु
सम्मान हिय का नहीं पाया है
इसकी
माया का जग में नहीं पार है
एक क्षण में
बदल देता व्यवहार है
जब जिसे
चाहे जैसे नचा
देता है
इसके
हाथों में भी प्यार तकरार है
ये रुलाता भी
है और हँसा देता है
नैतिकों
को भी अक्सर फँसा देता है
राहु
केतु शनि से भी भारी
है ये
पाप
के दलदलों में
धँसा देता है
पाप
भी पुण्य भी मान भी करता है
पाप
बढ़ जाये तो
दान भी करता है
राजसी
गुण बड़प्पन दिखाता तो है
किन्तु
अपनों का अपमान भी करता है
पवन
तिवारी
२५/०५/२०२१
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