यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 18 मई 2022

धूसर धूसर ये मुखमंडल

धूसर धूसर ये मुखमंडल तुमसे मिलकर खिल जाता

क्षण भर भी संवाद कर सके तो अंतरतम सुख पाता  

प्रेम में  भी  कई  रूप  प्रेम  के होते हैं  ये तुम जानो

साथ  में  होते  हो जब मेरे, हिय  धीरे - धीरे गाता

 

इक निर्भयता तुम होते तो चलती रहती  साथ में

हर्ष निरंतर बढ़ता  जाता  तुमसे  तो हर  बात में

तीव्र  गति से ऊष्मा लेकर एक ऊर्जा बढ़ती जाती

जब  कभी  भी  हाथ तुम्हारे  होते  मेरे  हाथ  में

 

तुम्हरे बिन कोई उत्सव क्या रंग ही जमता नहीं

बिन तुम्हारे ज़िंदगी का सफर  ये जँचता  नहीं

क्या  कहूँ  कैसे  कहूँ  तुम बिन  अधूरापन  लगे

कुछ समय यदि ना मिले तो वक़्त ही कटता नहीं

 

तुमपे  है  अनुरक्ति  तुम  पे  राग  है अनुराग है

मेरे  जीवन  में  बराबर  का  तुम्हारा  भाग  है

कृष्ण  या  राधेय  सा  जग  में  ना कोई दूसरा

हे  सखे  सर  पे  तुम्हारे   मित्रता  की  पाग है

 

पवन तिवारी

३०/०५/२०२१

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