धूसर धूसर ये मुखमंडल तुमसे मिलकर खिल जाता
क्षण भर भी संवाद कर सके तो अंतरतम सुख पाता
प्रेम में भी कई
रूप प्रेम के होते हैं
ये तुम जानो
साथ में होते हो जब मेरे, हिय धीरे - धीरे गाता
इक निर्भयता तुम होते तो चलती रहती साथ में
हर्ष निरंतर बढ़ता जाता तुमसे तो हर बात में
तीव्र गति से ऊष्मा
लेकर एक ऊर्जा बढ़ती जाती
जब कभी भी हाथ तुम्हारे
होते मेरे हाथ में
तुम्हरे बिन कोई उत्सव क्या रंग ही जमता नहीं
बिन तुम्हारे ज़िंदगी का सफर ये जँचता नहीं
क्या कहूँ कैसे कहूँ तुम
बिन अधूरापन लगे
कुछ समय यदि ना मिले तो वक़्त ही कटता नहीं
तुमपे है अनुरक्ति तुम पे राग है
अनुराग है
मेरे जीवन में बराबर
का तुम्हारा भाग है
कृष्ण या राधेय सा जग में ना
कोई दूसरा
हे सखे सर पे तुम्हारे
मित्रता की पाग
है
पवन तिवारी
३०/०५/२०२१
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