यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 12 मई 2022

ज़िंदगी में धूप

ज़िंदगी  में   धूप   बढ़ती  जा  रही  है

जेठ के कुछ  जैसे  तपती  जा  रही  है 

जो  भी  कोमल  भाव  हैं  मुरझा रहे

ज़िंदगी  की  हँसी  ढलती  जा रही है

 

अहं  की  दीवार  उठती  जा  रही है

स्नेह वाली आग  बुझती  जा  रही है

रिश्तों  में  मतलब की गाँठें बढ़ रहीं

अपनेपन  की  गंध मरती जा रही है

 

दुनिया अपने मन की करती जा रही है

ग़ैर  के  मन  को  झिड़कती जा रही है

हर  तरफ  तस्वीर  अपनी   ही  सजा

जो  हैं  दर्पण  तोड़ती ही  जा  रही है

 

आदमीयत बस  बिखरती जा रही है

पाशविकता बस निखरती जा रही है

जो बचे हैं अब भी मिल प्रतिरोध कर लो

साँस  अंतिम है  उखड़ती  जा रही है

 

पवन तिवारी

१६/०५/२०२१    

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