गर्मी
में बादल दीवाने
घिर
घिर के आते बरसाने
उसे
देखकर पवन बहकता
दौड़ा
जाता आँधी लाने
शीतल-शीतल
धरती होती
घासों
में है जीवन
बोती
छप्पर
टाट कई उड़ जाते
बुढ़िया
काकी बैठे रोती
देखा
देखी मन बढ़ता
है
बिना
भूख के खाते खाने
देखा
देखी चिड़िया गाये
देखा
देखी कपि मुँह बाये
देखा
देखी करता बच्चा
रोरो
करके जिद मनवाए
देखा
देखी बहुत हो रहा
समझाने
पर भी ना माने
प्रकृति
सब थोड़े इक जैसे
कहने
को हैं ऐसे वैसे
सभी
नकलची ज्यादा कम हैं
ये मत पूछो कौन है कैसे
देखा
देखि का रंग ऐसा
बेसुरे
भी लगते हैं गाने
पवन
तिवारी
१३/०५/२०२१
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