यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

गेहूँ की पाती पर

गेहूँ की पाती पर  चढ़ के ठुमकती है ओस देखो

और सर्दी की तपन से मुँह से निकले भाप देखो

बाँस गीला सा लगे है भीगी-भीगी दूब देखो

लकड़ियों में है उदासी ठिठुरी ठिठुरी धूप देखो

 

शीत में पानी गरम है जल से उठती भाप देखो

आग चूल्हे की न सुनती  धुंएँ का  परताप देखो

हर तरफ रानी  रजाई  चद्दरों  का  भाव देखो

छोटी टोपी भी गरम है  स्वेटरों का ताव देखो  

 

मारे - मारे सूर्य फिरते कुहरों का है राज देखो

हर घड़ी संध्या सी लागे  पूस का अंदाज देखो

कोई सुनवाई नहीं है सर्दी का बस रूप देखो

इसका भी स्वागत करो ना जाड़ा ऋतु का भूप देखो

 

पवन तिवारी

२१/१२/२०२० 

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