यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

संशोधन

मुँह पर कहते अच्छा–अच्छा

पीछे बदनामी भी करते

घूमा करते साथ में वैसे

बस मौके पर गुल रहते

 

कहने को वर्षों की यारी

यारी कभी निभाई ना

दुःख में द्वार कभी ना आये

मिलने पर बस हाँ में हाँ

 

मित्र मित्र से भी जलते क्या

वर्षों संशय था इस पर

आँखों देखि पर क्या कहता

मित्र की आग से जला था घर

 

सच तो ये था मित्र नहीं वो

मित्र का बस सम्बोधन था

मित्र से परिचित में ले आया

ये विशेष संशोधन था

 

आप के अनुभव भी ऐसे क्या

जिन्हें मित्र वर्षों से कहते

तो उसमें बदलाव कीजिये

जो हिय से ना साथ में रहते

 

पवन तिवारी

१९/२१/१२/२०२०

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