यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

तुम्हें मालूम हो मेरे गीत कोई और गाता है

हमारे  शब्द  में  हर  ध्वनि  तुम्हारे   नाम   की  दिखे

कि  मैंने   गीत  अपने   सब  तुम्हारे    नाम  से  लिखे

कि तुमने दे दिया दिल और किसको छल किया मुझसे

मेरे  अब गीत तक  कहते  कि  नाता जोड़ा क्यों तुमसे

 

कहा  है  मैंने  गीतों  से  कि  अब  मेरे  नाम  से  होंगे

किताबों  में   हर्फ़    सुंदर   बड़े   ही   शान  से  होंगे

हुआ  अच्छा  किताबें   प्यार  की  छपने  न पायी थीं

कि उसके नाम वाली धुन  कई  अब  तक  अगायी थीं

 

कि मरते-मरते उसने कम क्या हमको ज़िंदा छोड़ा था

कहीं  पर  मेरे  ख़ातिर  प्रभु  ने  रखा  और  जोड़ा था

उसे  तो  भाग्य  के  लेखे  का  कोई   भान  ही ना था

कोई  फिर  गुनगुनाया  वैसा  पहले   गान  ही ना था

 

वो  सारे  गीत  अब  केवल  उसी  के  नाम  से छपते

सभी  गाते  उसी  को  और  उसका   नाम  हैं  जपते

मेरे  कंठो   चूमा   गरल  क्षण   में  पी  लिया  उसने

कि  लग  के  सीने   से मेरे दुखों को  जी लिया उसने

  

 

वो   मेरी  है,  मैं  उसका  हूँ,  हमारी  जिंदगानी  है

तुम्हारी  यादें  हैं  लेकिन  वो  यादें  अब  बेमानी हैं

हमारी  ज़िन्दगी  में   प्यार  की  फिर  से रवानी है

कि जिसने हाथ थामा उस पे सब कविता कहानी है

 

तुम्हें  मालूम  हो  मेरे  गीत   कोई   और   गाता  है

मेरा दिल उसके स्वर में खिलखिला के गुनगुनाता है

तुम्हारी दुनिया  हो  आबाद  हरदम  मुस्कराओ तुम

कोई  शिकवा नहीं मुझको किसी  के गीत गाओ तुम

 

पवन तिवारी

२५/१२/२०२०

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