यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

वह तो हिंदी के फूल बोता है

गीत गम  को  उतार देता है

पवन को सुन निखार देता है

रोग  संगत  के कई लगते हैं

प्यार का  वो बुखार देता है

 

द्वार पर जब भी गीत आते हैं

किवाड़ तक भी गुनगुनाते हैं

पवन को देख गीत हँस पड़ते

मिले तो साथ मिल के गाते हैं

 

गीत और वो भी दोनों जज़्बाती

लगता सदियों से दोनों हैं साथी

उसका हर भाव जैसे फूल खिले

उसके शब्दों से भी ख़ुशबू आती

 

वो तो  हिंदी  के  फूल बोता है

वो  तो गीतों को लेके सोता है

कहानी कविता से मैत्री उसकी

इनके बिन होता है तो रोता है

 

 

इक   जमाना   उसे   भुलाता  है

इक  जमाना  जो  उसे   गाता है

हो कुछ भी जिक्र उसका आता ही

कितने दिल में वो घर बनाता है

 

पवन तिवारी

२४/१२/२०२०  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें