हो रहा वायु अन्तस् शीतल, ऋतु वर्षा जाने वाली है
कुहरा थोड़ा,थोड़ी ओस
बढ़ी,ऋतु शीत की आने वाली है
पंखों की जगह लागे
कम्बल नये मौसम की तरुणाई है
अब गये पसीने के
मौसम नयी रुत अलाव की आयी है
सब थे गर्मी से भाग
रहे अब सबको गर्म-गर्म चहिए
फले तो कहीं सो जाते
थे अब बिस्तर नर्म-नर्म चहिए
पहले शीतल जल मांगते
थे अब तो जल गर्म-गर्म चहिये
मुँह खोलो भाप
निकलती है कमरा भी गर्म-गर्म चहिये
फैशन में हुए जो
अधनंगे उनको भी बदन ढके चहिये
ऐसी प्रकृति ऋतु
माया है प्रभु की माया को क्या कहिये
अब जो खाओ अब जो
पहनो जाड़े की गज़ब कहानी है
मासूम बड़ी लगती ये
ऋतु, ये ऋतु ऋतुओं की रानी है
करती विपन्न पर
जुल्म भी ये, ये रानी की मनमानी है
गुण के संग कुछ
अवगुण भी हैं ये वायु की भी दीवानी है
इसका चरित्र भी उठा
गिरा सुखदायी भी
दुखदायी भी
निर्बल पर अत्याचार करे
निर्धन के लिए
हरजाई भी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
०६/१०/२०२१
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