कवितायें मेरी सुननी
हैं सुनिये सुनाइये
मंचों से ठीक,मेड़ से
भी स्वर में गाइये
साहब भी सुन रहे
हैं, ये अच्छी बात है
मज़दूर वाली भी ज़रा, कविता सुनाइये
साहब के लिए गीत ग़ज़ल
सब ने लिखें हैं
कुछ लोग कम में और
कुछ ज्यादा में बिके हैं
मैं हूँ नहीं गिनती
में, हूँ, सुकून में मगर
कविता में मेरे कृषक व मजदूर
दिखे हैं
इस अलग वक़्त में
तेवर भी अलग है
कविता का मेरे थोड़ा जेवर भी अलग है
कविता में मेरे
रिश्ते भी उभरे है बहुत ख़ूब
कविता में मेरे लखन
सा देवर भी अलग है
सुनिये सुनाइये कोई पाबंदी नहीं है
कविता का है सारा
जहाँ हदबंदी नहीं है
कविता का नाम लेकर
ना और सुनाओ
कविता में
जरूरी तुकबन्दी नहीं है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१०/०९/२०२०
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