रोते हँसते गुजार
देते हैं
लोग ताने हजार देते
हैं
नफरतें फैली जहाँ भर में हैं
किन्तु कुछ हैं जो
प्यार देते हैं
कुछ तो हक़ को ही मार
देते हैं
और कुछ जो उधार देते
हैं
दुःख में भी आते
हँसाने वाले
दोस्त सब कुछ ही वार
देते हैं
कुछ हँसी से ही तार
देते हैं
मिलते ही कुछ निखार
देते हैं
कुछ बिना बात के
बिगड़ते हैं
कुछ जो आकर सँवार
देते हैं
कुछ जो बनती बिगाड़
देते हैं
कुछ बसे को उजाड़
देते हैं
कुछ जो मामूली से
हैं दिखते मगर
अच्छे - अच्छों को झाड़
देते हैं
लोग कैसे ईनाम देते हैं
हमारे काम पे कोई और
नाम देते हैं
कृषक मज़बूर देख कर
बनियें
फसल के घटिया दाम
देते हैं
सूर्य तो यूँ ही घाम
देते हैं
लोग मतलब से काम
देते हैं
आदमी प्रकृति में
अंतर यही है
स्वार्थ निस्स्वार्थ
धाम देते हैं
ज़िन्दगी को यूँ जाम
देते हैं
उम्र यूँ ही
तमाम देते हैं
कट ही जाती है बुरी
अच्छी ये
आओ गाकर सलाम देते
हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१३/०९/२०२०
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