प्रेम को क्रीड़ा समझ
बैठे तुम
सत्य को रोड़ा समझ
बैठे तुम
तुमको देखा तो बस
तुम्हें देखा
मनुज को घोड़ा समझ
बैठे तुम
अश्रु तुमको सदा
विनोद लगे
गैर की बाँहों में प्रमोद
लगे
लुटा के जिसपे खुद
को गर्व किया
और उसको कोई मृदुल
सरोद लगे
प्रेम में तुमने छल
किया ऐसे
रक्त हिय का हो पिस
रहा जैसे
छल का घृत यज्ञ में
उड़ेला यूँ
सह रहा अग्नि को
ह्रदय कैसे
तुम्हारा छल ही देगा
त्रास तुम्हें
करेगा रोज - रोज
ह्रास तुम्हें
गलोगे दुःख में तुम
भी हिम की तरह
धूर्त का बनना होगा
ग्रास तुम्हें
विलम्ब होगा किन्तु बिलाखोगे
खो के सब अंत में ही
समझोगे
यही विलम्ब बड़ा दुःख सबसे
प्रेम की आंच से ही झुलासोगे
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१९/०९/२०२०
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