ज्यादातर हैं छवि के
मारे 
भटक रहे हैं द्वारे –
द्वारे
हिय के नगर नहीं
जाते हैं
वन - वन घूमें ज्यों
बंजारे
छवि  आकर्षक  जैसे
 तारे 
बहुतों  ने हैं 
खुद  को वारे
छवि की आभा सागर
जैसी
पर  सागर 
होते  हैं  खारे
लम्बी दूरी  छवि  के  सहारे 
राह में  कितने  स्वर्ग
सिधारे 
छवि की माया से जो
बच गये 
आगे  चलकर   हुए   सितारे
छवि से  दृष्टि 
बचा ले प्यारे 
छवि के तब सब शस्त्र
हैं हारे
हिय के घर तब  ही 
पहुँचेगा
जीवन  के 
फिर  वारे – न्यारे
पवन तिवारी 
संवाद – ७७१८०८०९७८   
२४/८/२०२०
 
 
 
बहुत सुंदर पवन जी आपकी लेखनी कमाल की हैं.... पढ़कर मन को सुकून मिलता है
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