यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

ज्यादातर हैं छवि के मारे

ज्यादातर हैं छवि के मारे

भटक रहे हैं द्वारे – द्वारे

हिय के नगर नहीं जाते हैं

वन - वन घूमें ज्यों बंजारे

 

छवि  आकर्षक  जैसे  तारे

बहुतों  ने हैं  खुद  को वारे

छवि की आभा सागर जैसी

पर  सागर  होते  हैं  खारे

 

लम्बी दूरी  छवि  के  सहारे

राह में  कितने  स्वर्ग सिधारे

छवि की माया से जो बच गये

आगे  चलकर   हुए   सितारे

 

छवि से  दृष्टि  बचा ले प्यारे

छवि के तब सब शस्त्र हैं हारे

हिय के घर तब  ही  पहुँचेगा

जीवन  के  फिर  वारे – न्यारे

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८   

२४/८/२०२०

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