पतझड़ में भी फूल
खिले हैं
जंगल में भी मीत मिले हैं
कभी-कभी कुछ लोगों
को तो
गैरों से भी गिले
रहे हैं
रोना भी सुख दे जाता है
गैर से भी मरहम पाता
है
कुछ भी हो सकता है
यहाँ पर
ये भी जीवन कहलाता
है
अपने कभी
पराये होते
अपनों में ही खुद को
खोते
मरुथल में भी झील
मिली है
अपनों से
खा धोखा रोते
जीवन तो
बहुरंगा है
जो समझा
सो चंगा है
दिल की किया तो खुश
रह लेगा
मान के चल सब जग चंगा है
पवन तिवारी
संवाद –
७७१८०८०९७८
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