उसने हरकत की मैंने जो देखा नहीं
उसने भी ऐसे में खुद को टोका नहीं
जिन्दगी देसी वाली जिलेबी सी है
ये अलग बात है हमने सोचा नहीं
देखते ही हमें वे गले मिलते हैं
और पीछे कहें क्यों ये मरता नहीं
नाज़ नखरे मैं उनके उठाता नहीं
मैं फ़क्त इसलिए उनको भाता नहीं
उनके भी दोस्त अपने हुए दोस्त जो
नाम उनको ‘पवन’ का सुहाता नहीं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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