सारा जतन मुझे करना
है
तड़प है बस तुमसे
मिलना है
मैं ही केवल प्रेम
में पागल
या तुम्हें भी सूली चढ़ना है
आग यहाँ पर
लगी हुई है
क्या तुम में भी जगी
हुई है
ऐसा कभी विचार न लाना
क्या दिल से कुछ ठगी
हुई है
जब से दूर हुआ उर से उर
हिय में बहे हवा झुर
झुर झुर
बिछुड़न का आनन्द अलग
है
उखड़े मन तो बोले चुर
चुर
इस दुःख में आनन्द बड़ा
है
सच्चा प्रेम सो तन
के खड़ा है
अबकी मिले तो मिल जायेंगे
देख रहे सब प्रेम अड़ा है
तुम विश्वास बनाए रखना
प्रेम का दीप जलाए रखना
अधिंयारे सब जल जायेंगे
हौंसला सर पे उठाये रखना
साथ साथ हमको
जीना है
बैरी जाने क्या मरना है
प्रेम तो प्रभु का
प्रिय स्वरुप है
अपना ध्येय प्रेम करना
है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें